हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इमाम खुमैनी रह. ने अपने सबसे रौशन और पायदार जुमले में अपनी जिहादी और ईसार (बलिदान) की रूह को यूं बयान किया,अगर पूरी दुनिया में तलाश करो, तो मुझसे ज़्यादा थका हुआ कोई नहीं मिलेगा लेकिन इस्लाम और मुसलमानों की सेवा सबसे ज़्यादा अहम है।
यह जुमला सिर्फ एक नैतिक सलाह नहीं है बल्कि इमाम खुमैनी (रह.) के अमली (व्यवहारिक) मक़तब (पद्धति) का निचोड़ है। ऐसा मक़तब जिसमें इस्लाम और अवाम की सेवा के रास्ते में थकान और मेहनत अपनी अहमियत खो बैठती है और उसकी जगह एक बे-हद और खुदाई जज़्बा ले लेता है।
इमाम (रह.) ने यह बात इंकेलाब के शुरुआती दिनों में, संकटों और कठिनाइयों के दौरान, इस्लामी निज़ाम के कमांडरों और खिदमतगुज़ारों के सामने कही ताकि उन्हें सिखाया जा सके कि सेवा सबसे बड़ी इबादत है और इसकी मेहनत को बर्दाश्त करना अल्लाह की सबसे ऊंची इताअत आज्ञापालन है।
इमाम खुमैनी (रह.) अपनी पूरी ज़िंदगी में अवाम और इस्लाम की सेवा की अहमियत को उजागर करते रहे और सबसे कड़ी थकान को भी खुदा की राह में खुशी-खुशी कबूल करते रहे आपने बार-बार हुक्मरानों को जनता की निरंतर सेवा की दावत दी और फरमाया,इस्लामी जम्हूरियत के सेवक चाहे किसी भी ओहदे या मकाम पर हों, उनकी खालिस सेवा और इंकलाब की मुश्किलों और दुश्वारियों पर सब्र करना अल्लाह की सबसे अफज़ल इबादत है।
इमाम खुमैनी (रह.) की यह सोच न सिर्फ इस्लामी निज़ाम के ज़िम्मेदारों और सेवकों के लिए बल्कि दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक बेहतरीन नमूना बन गई। आपके फिक्र और अमल ने दुनिया की आज़ादीपसंद तहरीकों और इस्लामी मुखालिफ़त आंदोलनों को प्रेरित किया और उम्मते इस्लामिया को इज़्ज़त और करामत से नवाज़ा। आपने अनगिनत जिस्मानी और रूहानी तकलीफें बर्दाश्त कीं लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी और इस्लाम व मुसलमानों की सेवा को अपनी ज़िंदगी का मक्सद बनाए रखा।
आज भी इमाम (रह.) का यह पैग़ाम जिंदा और असरदार है जब भी हम इस्लाम और अवाम की सेवा के रास्ते में थकावट महसूस करें तो हमें याद रखना चाहिए कि इमाम खुमैनी (रह.) ने सख्त से सख्त हालात में भी थकान को खुद पर हावी नहीं होने दिया और इस्लाम व मुस्लिमीन की सेवा को हर चीज़ पर तरजीह दी। यही रूह इस्लामी इंकलाब की पायदारी और तरक्की का राज़ है और हक़ के रास्ते के खिदमतगुज़ारों के लिए हमेशा का नमूना है।
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